ऑफ़िस के लिए लाखों रुपए का महँगा सामान ख़रीदना, ज़मीन क़ब्ज़ा करना, पैसों की हेराफेरी, भ्रष्टाचार और यौन उत्पीड़न – ऐसे ही कुछ आरोपों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को महाभियोग या इंपीचमेंट के ज़रिए हटाने की कोशिश भारत के इतिहास में कई बार हुई है.
हालाँकि आज तक किसी भी जज को महाभियोग की प्रक्रिया से हटाया नहीं गया है.
कई बार ऐसा हुआ है कि किसी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के ख़िलाफ़ महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा के अध्यक्ष/सभापति के सामने लाया गया, इसके बाद भी वे अलग-अलग कारणों से आगे नहीं बढ़ पाए.
कभी पर्याप्त सांसदों ने महाभियोग का समर्थन नहीं किया तो कभी जज ने प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
मौजूदा समय में भारत में दो जजों के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात चल रही है. पहले हैं, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा. इनके घर पर कथित तौर से बड़ी मात्रा में नक़दी मिली थी.
जबकि दूसरे हैं, इलाहाबाद हाई कोर्ट के ही एक और जज, जस्टिस शेखर यादव. इन्होंने विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में भाषण दिया था. इसमें उन्होंने तीन तलाक़ और यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दों पर बात करते हुए कहा था कि “हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा.”
जस्टिस यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जाँच समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजी है.
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस मानसून सत्र में सरकार जस्टिस यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग का प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है.
वहीं, 55 सांसदों ने जस्टिस शेखर यादव के ख़िलाफ़ महाभियोग कार्यवाही शुरू करने के लिए राज्यसभा के सभापति को प्रस्ताव
किसी जज को पद से हटाना बड़ा ही मुश्किल काम है और इसकी प्रक्रिया भी लंबी है. पहले तो लोक सभा के सौ सांसद या राज्य सभा के पचास सांसद महाभियोग प्रस्ताव पर अपना दस्तख़त कर संबंधित सदन के अध्यक्ष/सभापति को भेजते हैं
अब अध्यक्ष/सभापति पर यह निर्भर करता है कि वे इस प्रस्ताव को स्वीकार करें या नहीं. अगर अध्यक्ष/सभापति इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं तो वे तीन सदस्यों की एक समिति का गठन करते हैं. फिर वह इस मामले की तहक़ीक़ात करती है
अगर समिति यह पाती है कि जज के ख़िलाफ़ आरोप बेबुनियाद हैं तो मामला वहीं ख़त्म हो जाता है.भेजा है.
अगर समिति जज को दोषी पाती है तो फिर उनकी रिपोर्ट की चर्चा संसद के दोनों सदनों में होती है. इसके बाद इस पर वोटिंग होती है.
किसी महाभियोग प्रस्ताव को पारित होने के लिए दोनों सदन में विशेष बहुमत यानी दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है. इतना बहुमत होने पर महाभियोग प्रस्ताव पारित होता है और आख़िरकार राष्ट्रपति के पास जाता है. फिर वह जज को हटाने का आदेश देती हैं.
महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ा जा सकता है
कई लोगों का मानना है कि न्यायालय की स्वतंत्रता बरकरार रखने के लिए इस प्रक्रिया को जानबूझ कर कठिन बनाया गया है
चलिए मझते हैं कि इनसे पहले आए महाभियोग प्रस्ताव में क्या-क्या हुआ है