कुछ लोग इसे केंद्र सरकार की नीतियों- जैसे ‘डिजिटल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर विशेष ज़ोर का परिणाम मानते हैं. उनका कहना है कि इन पहलों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई है और साथ ही किसानों, मज़दूरों और मध्यम वर्ग के लिए उम्मीदें जगाई हैं.
दूसरी ओर, कुछ आलोचक इस विकास को सतही मानते हैं. उनका तर्क है कि जब तक हर नागरिक को रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलतीं, तब तक भारत विकसित देशों के बराबर नहीं हो सकता.
आंकड़ों पर कई सवाल उठते हैं, जैसे- भारत के इस मुक़ाम तक पहुंचने में मोदी सरकार की किन नीतियों की मुख्य भूमिका रही?
सवाल ये भी है कि अर्थव्यवस्था के तेज़ी से बढ़ने के बावजूद बेरोज़गारी दर अब भी ऊँची क्यों है? इस विकास का असली लाभ किन तबकों को मिल रहा है? डिजिटल क्रांति ने इस बदलाव में कैसी भूमिका निभाई
सब कुछ इतना बेहतर है, तो फिर अमीर-ग़रीब के बीच की खाई क्यों बढ़ रही है? और सबसे अहम सवाल- इस आर्थिक प्रगति का आम नागरिक की ज़िंदगी पर असल असर क्या पड़ा है